हम बचपन से ही ये सुनते आये हैं, की हमारे वेद पुराण अंग्रेज चुरा कर ले गये और उन्होंने हमारे वेद पुराण पड कर, नये- नये आविष्कार किए, अब कुछ लोग पूछते हैं, भाई उन्होंने किये तो हमने क्यों नहीं किये,उसका जवाब यह है, हमने भी किये तभी तो भारत सोने की चिड़िया कहलाता था, परन्तु बाद में हजारों वर्षों की गुलामी में हमे ये अवसर नहीं मिला, फिर ये सवाल अक्सर उठता है, कि वेद पुराण वास्तव में चमत्कारी हैं, या ये केवल कल्पना है ?
मेरा मत है, वैद पुराण ना केवल चमत्कारी व् विज्ञानिक दृष्टिकोण से एकदम प्रमाणित हैं, बल्कि ये मानवता की शुरुआत व् विकास की कहानी है, जिसकी मैंने जन साधारण और सरल भाषा में आप तक पहुचाने की कौशिश की है.
तो आइये पहले ये तो जान लें की आखिर वेद, पुराण श्रुति, शास्त्र, मन्त्र, उपनिषद हैं क्यां. ये जानकारी आप पहुंचाने के लिए गुरु शिष्य परम्परा का सहारा लिया गया है, जहां शिष्य यानी जिज्ञासु जो अज्ञात को जानना चाहता है,सवाल करता है व् गुरु जिज्ञासा शांत करता है, तो शुरू करते हैं:
प्रश्न: वेद क्या है ?
उत्तर: वेद मानव सभ्यता के लगभग सबसे पुराने लिखित दस्तावेज हैं, और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं. वेदों में किसी भी मत, पथ या सम्प्रदाय का उल्लेख ना होना यह दर्शाता है कि वेद विश्व में सर्वाधिक प्राचीनतम साहित्य है.
यूनेस्को ने इसे विश्व विरासत सूची में शामिल किया है.
वेदों की 28 हजार पांडुलिपियां भारत में पुणे के “भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट” में रखी हुई हैं. इनमें से ऋग्वेद की 30 पांडुलिपियां बहुत ही महत्वपूर्ण हैं, जिन्हें यूनेस्को ने विश्व विरासत सूची में शामिल किया है. यूनेस्को ने ऋग्वेद की 1800 से 1500 ई.पू. की 30 पांडुलिपियों को सांस्कृतिक धरोहरों की सूची में शामिल किया है.
सबसे ज्यादा महतवपूर्ण बात ये है कि, यूनेस्को की 158 सूची में भारत की महत्वपूर्ण पांडुलिपियों की सूची 38 है.
अब तो मान लो.
वेद का अर्थ है ज्ञान, और वेद को जानने वाला को विद्वान यानी ज्ञानी कहते हैं, तो आप सब विद्वान बन सकते हैं, क्योंकि वेद को जानना बड़ा सरल है. वैदिक काल में देवता यानी भगवान् की केसे पूजा अर्चना केसे की जाये, और देनिक जीवन में काम आने वाले व्यवहारिक कार्यों को केसे किया जाये, इन सब बातों को जहां संकलित किया गया उसे वेद कहते हैं.
वेद से तत्कालीन उन्नत समाज और मानवता के क्रमबद्ध विकास का पता चलता है. जिसे आगे बताया गया है.
वेद श्रुति पर आधारित हैं, श्रुति यानी सुनी हुई बातें, वेद ईश्वर की वाणी हैं, जो ऋषी मुनियों द्वारा सुनी गई व आगे बताई गई.
लोग इनकी अनुपालना करें, तो उन्हें बताया गया ये सब बाते स्वंय भगवान् ने कही हैं.
अब भगवान् ने कही या नहीं कही इस विवाद में पड़ने की जरुरत नहीं है.
शिष्य : वेद कितने हैं ?
प्रश्न : वेद कितने हैं ?
उत्तर : आरम्भ में एक ही वेद माना जाता था, बाद में आकारगत विशालता को देखते इस के चार भाग कर दिए गए ।
1. ऋग्वेद 2. यजुर्वेद 3. सामवेद 4. अथर्ववेद
यह विभाजन मुख्यत पद्य, गद्य ओर गान साहित्यक विद्याओं पर आधारित है. सामान्यत किसी भी भाषा का साहित्य इन्ही तीन रूपों मे पाया जाता है.
वेद, श्रुति परंपरा से पीढ़ी दर पीढ़ी विकसित होते रहे।
प्रश्न : श्रुति का क्या अर्थ है ?
आगे कल ......भाग 2